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आवारागर्द

हीरा है उस पर उँगली की पोर का एक हलके से स्पर्श का दबाव पड़ते ही घड़ी अत्यन्त मोहक सुरीली तान में घंटा, मिनट, सैकिड सब बजा देती है उस तान की गूंज समाप्त होते होते ऐसा मालूम देता है मानो अभी-अभी यहाँ कोई स्वर्गीय वातावरण छाया रहा हो। दूसरे हीरे को तनिक दबा देने से दिन, तिथि, तारीख-पक्ष, मास, संवत् सब ध्वनित हो जाते हैं। यही नही, घड़ी में हज़ार वर्ष का कैलेण्डर भी निहित है; हज़ार वर्ष पहिले और आगे के चाहे भी जिस सन् का दिन, मास और तारीख आप मालूम कर सकते हैं। ऐसी ही वह आश्चर्य जनक घड़ी है, जिसे डाक्टर साहब अपने प्राणों से भी अधिक प्यार करते हैं। कहते हैं—एक बार हुजूर आलीजाह महाराज ने पचास हज़ार रुपये इस घड़ी का डाक्टर साहब को देना चाहा था, तिस पर डाक्टर साहब ने घड़ी महाराज के चरणों मे डाल कर कहा था—'अन्न- दाता, मेरा तन, मन, धन, सब आपका है, फिर घड़ी की क्या औकात है; पर इसे मै बेच तो सकता ही नहीं।' और महाराज हँसते हुये चले गये थे। यह घड़ी स्वीडन के एक नामी कलाकार से नैपाल के लोक-विख्यात महाराज चन्द्र शमशेर जङ्गबहादुर ने, जब वे विलायत गये थे, मुँह माँगा दाम देकर खरीदी थी और अपने इकलौते पुत्र के प्राण बचाने पर सन्तुष्ट होकर उन्होने वह डाक्टर को दे डाली थी। वह घड़ी वास्तव मे नैपाल के उत्तराधिकारी के प्राणों के मूल्य की थी। कमरे के बीचो-बीच बिल्लौर की एक गोल मेज़ थी। यह मेज ठोस बिल्लौर की थी, उसका सारा ढाँचा ही बिल्लौर का था। सर्पाकार एक पाये के ऊपर मेज रक्खी थी। यह मेज़ खास इसी मकसद के लिये डाक्टर साहब ने खास लण्डन से खरीदी थी। उस मेज पर इटली की बनी एक अति भव्य मार्वल की स्त्री-मूर्ति थी। यह मूर्ति रोमन कला की प्रतीक रूप थी, जिसे डाक्टर साहब ने बड़ी खोज-जॉच से खरीद कर