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तिकड़म

इन्तकाल हो गया, बड़ा अफसोस हुआ। मै तब न आ सका था। पिता जी और वड़े भाई आये थे।

अब जो शादी का निमन्त्रण पहुॅचा तो फिर मुझे आना ही पड़ा। टूटे रिश्ते का बहुत ख्याल रखना पड़ता है। पिता जी ने भी लिख दिया कि जरूर जाना। मै वक्त के वक्त ही पहुँचा। पता लगा, बारात इसी गाड़ी से जा चुकी है। लाचार मोटर से जाने का इरादा किया और लारी मे बैठ कर चल दिया। गाज़ियाबाद मे लारी कुछ देर को रुकी। गरमी तेज थी, सोचा—एक गिलास शरबत पीकर पान खा लूँ। सामने ही दूकान थी। शरबत पी रहा था कि एक लड़के ने आकर कहा "आपको बीबी जी बुला रही हैं।"

मै बड़ा अकचकाया, पूछा 'कौन बीबी जी?'

उसने सामने के चिक पडे एक दुमंजिले बरांडे की ओर जंगली उठाई। कोई स्त्री चिक उठा कर हाथ से इशारा करके बुला रही थी। दूर होने के कारण पहिचान न पाया। पास जाकर देखा तो बहिन है। पहिले आँखों को धोखा हुआ। मै पैर बढ़ाकर एक एक ही सॉस में ऊपर चढ़ गया। बहिन ही थी। वह हस रही थी, और मेरी आँखों से 'धड़ाधड़' ऑसू बह रहे थे।

बहिन की हसी ओठों में रह गई। उसे घर में किसी अनिष्ट की आशका हुई। उसने घबरा कर कहा "भैया, हुआ क्या है, कहो तो? घर मे सब अच्छे तो हैं?"

मैने सिर हिला कर कहा, "सब अच्छे हैं। पर बीबी तू तो मर गई थी। "

"मै मर गई थी? यह खूब कही। मैं तो यह खड़ी हूँ। तुम से किसने कहा?"