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आवारागर्द


"ना।"

"क्या हानि है?"

"ना।"

"सुहागी को देखोगे?"

"ना।"

"एक बार देख न लो?"

"ना।"

मित्र चला गया।

 

(४)

छ: वर्ष बीत गये। बंसी की हालत में कुछ भी सुधार नहीं हुआ। सुहागी का ब्याह हो गया। वह दो बच्चों की माँ है। बंसी की लगन उससे छिपी नहीं। उसकी सहेलियां उसे पहले बंसी की बात कहकर चिढ़ाती थीं। वह उन्हें गाली देती और गुस्सा होती थी। अब वह सिर्फ ज़रा हँस-भर देती हैं। वह बंसी के विषय में किसी से कुछ नहीं पूछती, पर सदैव बंसी के विषय में कुछ-न-कुछ जानने को आतुर रहती हैं। उसकी वह आतुरता अत्यंत गोपनीय है।

वह एक वर्ष बाद फिर लाहौर आई। उसकी सहेलियों ने बंसी के हालत बताए। सुहागी ने एक बार साहस करके अपनी अन्तरंग सखी बुंदन से कहा—"बुंदन, चल, जरा उस तेरे बंसी को देखें तो कैसा हैं।"

"देखोगी? पर अब वह पहले-सा छैल नहीं है।"

"देखूँगी तो भी।"

"कपड़ा खरीदना पड़ेगा।"

"खरीदूँगी।"

"और जो वह उसी तरहॱॱॱॱॱॱॱॱॱॱॱॱॱॱॱॱ"