पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/११८

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वह कहे तो ११५ . रास्ता चलते भी लडके उसे चिढ़ाने हैं, बसी अब चिढ़कर किसी को गाली नहीं देता, न मारने चलता है, वह केवल मुस्करा देता है। वह मुस्किराहट विचित्र-सी है। उसमे वेदना और उन्माद, दोनो प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। बसी की विनय और सहृदयता वैसी ही है। वह ठीक समय पर काम भी सब करता है, पर उससे भूले बहुत होती हैं। वह अब उतना बुद्धिसान, कुशाग्र बुद्धि नहीं रह गया । सुहागी कौन है, कहाँ रहती है, यह जानने की वसी ने कभी चेष्टा नही की। एक दिन उसके एक मित्र ने कहा-"बंसी, एक बात सुनोगे?", "क्या बात ?" "वही सुहागी की वांत ।" वसी मुस्किराकर चुप हो गया। "सुनोगे ?" मित्र फिर कहा। "कहो।" "उसका ब्याह कब हो रहा है।" "व्याह ?" "हाँ". "किसका?" "सुहागी का।" "हुश।" बसी ने मुस्किराकर मुंह फेर लिया। मित्र ने फिर कहा- "क्या विश्वास नही ?" "होगा।" बसी का स्वर धीमा पड़ गया, जैसे मरते हुए आदमी का हो जाता है। मित्र ने कहा-"बारात आई है। दूल्हा. देखोगे ?" 1 -