पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/११३

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आवारागर्द हेमलता उठ खड़ी हुई। उसने ऑचल सिर पर खिसकाकर ठीक किया। उसकी आँखों मे वेदना और करुणा नाच रही थी। उसने कहा-"जा ही रहे हो?" "हॉ लता।" "कभी पत्र लिखे ?” "नहीं ऐसा कभी न करना।" "कभी मिलोगे?" "नहीं, कभी नही। "कभी नहीं। "नहीं,कभी नही" कुछ देर वह चुप रही। उसके नेत्रों मे एक अद्भुत ज्योति चमकी । उसने धरती पर बैठकर बसतलाल के चरण छुए, माथा नेका, फिर कहा- "आशीर्वाद तो दोगे ?" "सदैव ।" .. 65