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हेरफेर

लता, सिर्फ आदर ही की बात मैं पूछता हूँ, और कोई बात जवान पर न लाना।"

हेमलता ने कपित स्वर में कहा—"मैं आपका देवता की भाँति आदर करती हूँ।"

"तब तुम मेरी बात सुनो। पति के लौट आने तक मेरा कुछ धन ग्रहण कर लो।"

हेमलता के आँसू सूख गए। उसने कहा—"मेरा पति पतित तो हैं, पर मैं पति पद की प्रतिष्ठा की रक्षा करूँगी। आपका धन मैं नहीं लूंगी। मुझे कोई कष्ट नही हैं। परन्तु आप मेरी एक बात मानें, तो कहूँ।

"कहो।"

"आप अवश्य ही व्याह कर ले। मैं विनती करती हूँ, हा-हा खाती हूँ, यदि मेरा दुख दूर किया चाहते हो।"

वह धरती मे पछाड़ खाकर गिर पड़ी, फूट-फूटकर रोने लगीं!

बसंतलाल का धैर्य च्युत हो रहा था। उन्होंने कहा—"उठो लता, मैं तुम्हें छू नहीं सकता। मेरे सामने इतना न तड़पो तुम्हारा यह वेश ही मेरे दर्द के लिये बहुत हैं। अपना अनुरोध भी वापस ले लो। जिस प्रतिष्ठा की रक्षा के विचार से तुम मेरा धन नहीं ग्रहण करतीं, उसी प्रतिष्ठा की रक्षा के विचार से इस जन्म में मैं विवाह नहीं कर सकता। हेमलता, ईश्वर जानता हैं, मैं तुम्हारी अपेक्षा अधिक सुखी हूँ। अफसोस यही हैं, तुम्हें उस सुख में से कुछ भी नहीं दे सकता।"

हेमलता कुछ देर धरती में पड़ी रही। बसंतलाल कुछ देर सोचते बैठे रहे। फिर आकर खडे हुए। उन्होंने कहा—"उठो लता तुम महावीर स्त्री हो, तुम धन्य हो। मुझे हँसकर बिटा दो। मैं जा रहा हूँ।"