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११. माडोका युद्ध । ८६ पहिले लोहै तुम्हरी द्याखें फिरिकचलोहियादेखुहमार १६४ सुनिकै बातें ये ऊदन की अनुपी भाला लीन उठाय ।। दूनी अँगुरिन भाला तौले कालीनाग ऐस मन्नाय १६५ छुटिगा भाला जो हाथेते कम्मर मचा उनाका जाय ।। घोड़ा बेदुला बायें ढेगा औषचिगयो ल हुरवाभाय १६६ हसिकै बोल्यो तब अनुपीते यहु रणबाघु उदयसिंहराय ॥ दूधु लरिकई माँ पायो ना तुम्हरे मरे चढ़े ना घाय १६७ अब तुम सुमिरौ यहिसमयामाँ जो गाढ़े माँ होयसहाय ॥ वार हमारी ते बचिजायो घरमाँ छठी धरायो जाय १६८ अब ना वचिहौ रणखेतनमें अनुपी सम्हरि होउ हुशियार॥ इतना कहिक बघऊदन ने नंगी बँचिलीन तलवार १६६ मरी सिरोही तब अनुपी के धरती गिरयो भरहराखाय ॥ मरिगा अनुपी रणखेतन माँ टोडरमलौ पहूँचा आय १७० औ ललकारा वधऊदन का अब तुम खवरदार लैजाय ॥ धोखे अनुपी के मूल्यो ना अवहीं सरगदेउँपहुँचाय १७१ बँचि सिरोही लइ कम्मर से औ ऊदन पर दई चलाय ॥ वार ढालपर ऊदन लीन्यो टोंडर हाथ मूठि रहिजाय १७२ सिरोहीगे टोंडर के तब मनसोचभयो अधिकाय ।। ऍड़ लगायो फिरि बेंदुलके टोंडरपास पहूँच्यो आय १७३ ढाल कि औझड़हनिकै मारयो औ घोड़ाते दियो गिराय ।। बाँधिकै मुश फिरि टोंडर की लश्करतुरतदीनपहुँचाय१७४ मारु बन्दभै तव हुँचना पर सायंकाल पहूँचा आय ॥ तारागण सब चमकन लागे संतन धुनी दीन परचाय १७५ परे मालसी निज निज शय्या घों घों कण्ठ रहा धर्राय ।।