यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आल्हखण्ड। ६०० देखिके डोला लाखनिराना तुरते कूचदीन करवाय॥ ॥ चलिभा डोला जब फाटकते पहुँचा तुरत चारे आय ४७. ऊदन बोले तब लावनि ते मानो कही कनोजीराय ।। कऊ दुसरिहा अब तुम्हरो ना बोला आप देउ लोटाय ४८ कीरति गैहें सब दुनिया मा ओ महरान कनौजीराय ।। इतना सुनिके लाखनिराना डोला तुरत दीन लौटाय ४६ आयग.विसहिन ते तुरतै तब यहु महाज पिघौराराय ।। सुनी हकीकति सबलाखनिकी हाथी तुरत लीन सजवाय ५० आदिभयङ्कर के ऊपर चढ़ि वैच्यो शम्भु शिवाकोध्याय ।। चौड़ा धाँधू अगल बगलमे डंका तुरत दीन वनवाय ५१ बाजत डंका अहतंका के राजन कूच दीनकरवाय ।। भारी लरकर महराजा का पहुँचा समरभूमि में जाय ५२ यहु महराजा तब गाजाअति राजा गरूदीन ललकार ।। मारो मारो ओ रजपूतो हमरे समरशूर सरदार ५३ जान न पावें मोहवेवाले अब शिरकाटि देउ भुइँडारि ।। गरुई गाजें सुनि राजाकी वाजें घूमि धूमि तलवारि ५४ मारे मारे तलवारिन के नदिया वही रक्तकी लाल । भरि भरि खप्पर नचें योगिनी मज्जें भूत प्रेत बैताल ५५ श्वान शृगालन की वनिमआई कागन लागी कारि बजार ।। गिद्ध औ चील्हनकेझुण्डनका मुण्डन उपर लाग दरखार ५६ वह लहाशें तहँ मनइन की तापर चढ़े काग औ कङ्क ।। उठिउठिलडिगिरिर कितन्यो मरिगे समर राव औ रङ्क ५७ घोड़ वेंदुला का चढ़वया ठाकुर उदयसिंह निस्शङ्क॥ भारति आवै रजपूतन को लीन्हे सङ्ग सिपाही बैङ्क ५८