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भाल्इखण्ड। ५५६ देखि कीमती दोउ कुण्डल को बेला बड़ी खुशी हैजाय १४१ चले पालकी के संगै मा यहु रणवाघु लहुवाभाय ॥ ताहर चलिभा राजमहल में जहॅपर बैठ पिथौराराय १४२ खबरि सुनाई सब लाखनि की डोला जौन भांति लैजायँ ॥ सुनिके वात ये ताहर की तब जरिउठा पिथौराराय १४३ तुरत चौंडिया को बुलवायो नाहर हुकुम दीन फरमाय ॥ लेकै छौजे जल्दी जाबो वेला डोला लेउ छिनाय १४४ जान न पावें कनउज वाले सबके मूड़ लेउ कटवाय ॥ इतना सुनिकै चौंड़ा चलिमा डकातुरत दीन बजवाय १४५ बाजत डंका अहतंका के चौड़ा कूत्र दीन करवाय ॥ भा भटमेरा फिरि लाखनि ते उदलगये बरोबरिआय १४६ माला वरची कड़ावीन की लागी होन भडाभड़ मार ।। पैदल के सँग पैदल सेना औअसवारसाथ असवार १४७ झंड़ि लपेटा हाथी भिडिगे अंकुश भिड़े महौतन केरि ।। हौदा होदा यकमिल ढगे मारे एक एक को हेरि १४८ ना मुँह फेरै दिल्ली वाले ना ई कनउज के सरदार ।। तेगा चमके वर्दवान का ऊनाचलैविलाइतिक्यार १४६ मारे गारे तलवारिन के नदिया वही रक्ककी धार ।। मूड़न केरे मुड़चौरा मे औ रुण्डनके लगे पहार १५० रुण्डन लेकै तलवारी को अद्भुत कीन तहॉपर मार ।। बड़े लड़या दोऊ ठाकुर माने नहीं तहाँ कछुहार १५१ यह यकदन्ता हाथी ऊपर चौड़ा गरू देय ललकार ।। मी इथिनी के उपर ते राजा कनउजका सरदार १५२ मा भटमेरा दउ शरन ते दोऊ खेचि लीन तलवार ।।