यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भाल्हखगड । ५०६ छाँड़े मुर्चा भागति आ औरी परे नजरि सब आय ।। दय्या बापू की धनि लागी कोऊ पाव घसीटनजाय १४२ बिना हाथ के कोऊ आवै कोऊ रोवै घाव दिखाय ।। हाय ! गोसइयाँ दीनबन्धुकहि कोऊ सज्जन रहे मनाय १४३ यह गति दीख्यो जव क्षत्रिनकै वोले तुरत बनाफरराय ।। ॥ सय्यद चाचा तुम बतलावो कहपर हटि कनौजीराय १४४ जो कछु द्वैहे लाखनि जियका सबके मूड लेव कटवाय ।। इतना सुनिकै सय्यद बोले मानो कही बनाफरराय १५५ तीनिस हाथी के हलकामा अकसर परे कनौजी जाय । प्राण आपने लय हम भागे मानो कही बनाफरराय १४६ नहीं आसरा लखराना का तुमते साँच दीन बनलाय ।। सात लाखलों फौजे लैकै आवा आप पिथौराराय १४७ शब्द पायकै हने निशाना त्यहिते कौन आसराभाय ।। सुनिकै वा ये सय्यद की ऊदन गये सनाकाखाय १४८ धनुवाँ वोला तब सय्यद ते चलिये फेरि समरको भाय ।। हमका तुमका जयचंदराजा सौंपा रहै कनौजीराय १४६ सम्मुख जातै महराजा के सय्यद जियत मौत लैजाय । इतना सुनिक सय्यद लौटे मुर्चा गहा तडाका आय१५० धनवाँ आयो फिरि मुर्चा मा औरौ शूर गये सब आय ।। तीनिसे हाथीके हलका मा पहुँचा तुरत बनाफरराय १५१ सवैया॥ लाखनि खोज करें वघऊदन नाहिं मिलय कहुँ ठौर ठिकाना । क्दत फॉदत मारत धावत आवत डंक वजाय निशाना ॥