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आल्हखण्ड। ब्राह्मण कायथ मुसलमान ओ नौकर रहे बहुत अँगरेज ॥ काम देखिके सब काहू को सोते नवल भवन तब सेज ४ को गति बरणे तिन मुंशीकै जिनको बढ़ो अमित परताप। लाखन पुस्तक के ऊपरमाँ जिनके परै अबॉलग छाप ५ तिन मुत बाबू प्रागनरायण जिन मन शान्ति रही दर्शाय॥ को गुण वरणे तिन बाबूके गाये कथा बहुत बढिजाय ६ छ० जिला जोन उन्नाम तासु पूरवादिशि माहीं। पांच कोस है ग्राम नाम पड़री तिहिकाहीं॥ किरपाशंकर मिश्र वृत्ति पण्डित की जाहीं। तिनसुत ललितेनाम अन्य निर्मापक आहीं ७ ते यश पर अब जयचंद का लैकै रामचन्द्र का नाम । प्रथम स्वयम्बर संयोगिनि का पाचे वरणों युद्ध ललाम ८ सबकनबजियात्यहिकनउजमाँ बीचम बसे तहाँ नरपाल । लूटि सुमिरना गै ह्यांते अब सुनिये कनउज केर हवाल : अथ कथाप्रसंग ॥ जयचंद राजा कनउज वाला आला सकल जगत सिरनाम।। को गति वरणे त्यहिमंदिरके सोहै सोन सरिस त्यहिधाम ? केसरि पोतो सब मंदिर है औछति लागि बनातन केर ।। सुवा पहाड़ी तामें बैठे चक्कस गड़े बुलबुलन केर २ लाल औ मैनन के गिनती ना तीतर घुमिरहे सब ओर।। पले कबूतर कहुँ धुटकत हैं कहुँ कहुँ नाचि रहे हैं मोर ३ लागि कचहरी है जयचंद के बैठे बड़े बड़े नरपाल । चना सिंहासन है सोने का तामें जड़े जवाहिर लाल ४ तामें बैठो महराजा है दहिने घरे ढाल तलवार ।