यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आल्हाकामनावन। १६७ नहीं तो होते मलखे ठाकुर कैसे चढ़त पिथोरा आय । जियत न जैसे हम कनउजको कौवा मरे हाड़ ले जाय ३५ इतना सुनिकै मल्हना बोली दोऊ नैनन नीर बहाय ।। राखो ईजति यहि समया मा जल्दी जाउ कनौजे धाय ३६ शोच विचारन की विरिया ना मैंने वारवार बलिजायँ ।। इतना सुनिकै जगनिक बोले माई साँच देय बतलाय ३७ घोड़ा मँगावो हरनागर को अवहीं जाउँ तड़ाकाधाय ।। इतना सुनिकै रानी मल्हना ब्रझै खररि दीन पठवाय ३८ माहिल ब्रह्मा जहँ बैठे थे चेरी तहाँ पहूँची जाय ॥ कह्यो सँदेशा सो मल्हना को दोऊ हाथ जोरिशिरनाय ३६ सुनि संदेशा रनि मल्हनाका बोला उरई का सरदार ।। घोड़ न देवो जगनायक कों ब्रह्मा मानु कही यहिबार ४० आल्हा रूठे हैं मोहवे ते कनउज वसे, बनाफरराय ।। घोड़ तुम्हारो फिरि दे हैं ना तुमते साँच दीन बतलाय ४१ कहा न माना कछु माहिलका ब्रह्मा घोड़ दीन कसवाय ॥ बड़ी खुशाली सों जगनायक सबको यथा योग शिस्नाय४२ मनियादेवनको सुमिरन करि घोड़ा उपर भयो असवार ॥ जहाँ पिथौरा दिल्ली वाला पहुँचा उरई का सरदार ४३ खबरि सुनाई जगनायक की माहिल बास्वार समुझाय ॥ लेउ बछेड़ा अब हरनागर मानो कहीं पिथोराराय ४४ इतना सुनिकै पृथीराज ने चौड़ा बकशी लीन बुलाय ।। कहि समुझावा सब चौड़ाते यहु महराज पिथौराराय ४५ हुकुम पायकै महराजा को चौड़ा कूच दीन करवाय ।। नदी बेतवा के ऊपरमा जगनिकगयोतड़ाकामाय ४६