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आल्हखण्ड। ४६६ विना बृदुला के चढ़वैया नैया कोन लगैहे पार ।। दैया मैया सुखदैया जग मैया शारद चरण तुम्हार २३ यह विचारत मल्हना रानी तुरतै बोलि लीन प्रतिहार ।। तुरत बुलावा जगनायक का भैने जौनु चँदेले क्यार २४ खवरि पायकै जगनायकजी तुरते गये तड़ाका प्राय ।। आवत दीख्यो जगनायक को मल्हना उठी तड़ाकाधाय २५ पकरि के वाहू जगनायक की अपने पास लीन वैठाय ॥ जगनिक वोले महरानी ते दोऊ हाथ जोरि शिस्नाय २६ कौन साँकरा है माई पर हमते हाल देउ बतलाय ॥ . तुरतै करिकै त्यहि कारज को पाछे शीश नवावों आय २७ इसना सुनिकै मल्हना वोली ईजति राखि लेउ यहिबार ॥ जल्दी जावो तुम कनउजको लावो उदयसिंह सरदार २८ सात लाखलों फौजै लैकै सागर परा आय चौहान ।। बारह दिनकी मुहलति दीन्ही त्यरहें लूटी नगर निदान २६ कहि समुझायो तुम आल्हाने की विपदामा होउ सहाय ॥ घाटि न समझा हम ब्रह्मा ते संकट परा आज दिनआय ३० इतना कहिके रानी मल्हना कागज कलम दवाइतिलीन।। शिरी सर्वऊ ते भूपित करि पूरण पत्र समापतकीन ३१ सो दै दीन्यो जगनायक को औरो को बहुत समुझाय ॥ जगनिक बोले तव मल्हनाते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ३२ कैसे जा हम कनउज को औ मुह कौन दिखावे माय । सवन चिरैया ना घर छोड़े नावनिजरा पनिजकोजाय ३३ तबै निकरिगे आल्हा ठाकुर तिनते वात न पूछाकोय ॥ विपति विदारण जगतारणकी मर्जी यही आज दिन होय ३४