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आल्ह खण्ड। ४५२ काली जामुन काले मेघा नीचे ऊपर करें वहार १०० योगी पहुँचे मदनताल पर यारो सुनो कथा यहिवार ।। चौड़ा ठाढ़ो तट मल्हना के बकशी जौनुपिथौराक्यार १०१ फहन सँदेशा सो जब लाग्यो आयो देशराज के लाल ॥ धरिक डाट्यो तह चौंडाका झगरा काह करें नरपाल १०२ कीनि प्रतिज्ञा हम रानी ते तुम्हरी पर्व द्याव करवाय ॥ काह हकीकति है पिरथी के लूटें मदनताल पर आय १०३ . इतना सुनिकै ताहर जरिगे अपनी बैंचिलीन तलवार ।। तव लखराना कनउज वाला सम्मुखभयो तुरत सरदार१०४ ताहर लाखनि का मुर्चा मा चौंड़ा मैनपुरी चौहान ॥ कोगति वर बघऊदन कै लागो करन खूब घमसान९०५ होदा होदा बेदुल नाचें ऊदन करें खूब तलवार । बावनहौदा खाली द्वैगे जूझ हाथिन के असवार १०६ चोट लागिगे कळु धाँधू के सोऊ गिरे मू.खाय ।। सँभरिके बैठे फिरि हौदा पर मनमाशोचिशोचिरहिजाय१०७ बड़े लडैया सब योगी हैं मुर्चा पूरे दीन जमाय ।। अपने अपने सब मुर्चन मा ठकुरन दीन्ही राबिढ़ाय १०८ ललातमोली धनुवाँ तेली सय्यद वनरस का सरदार ॥ लाखनि ऊदन देवागकुर रणमा खूब करें तलवार १०६ कोगति वरणे तहँ ताहर के नाहर दिल्ली का सरदार ॥ चौड़ा धाँधू कछु कमती ना येऊ करें भडाभड़ मार ११० चलें सिरोही भल सागर में ऊना चलै विलाइति क्यार ।। खट खट खट खट तेगा वोले वोले छपकवपक तलवार १११ झलमल् झल्झल् चरीचमकें दमके रणमा खूब कटार ।।