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आल्हखण्ड। ४४२

करों वन्दना पितु माता को दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ।। मातु भवानी पितु परमेश्वर चन्दनकिहे स्वर्गकाजाय १८६ निश्चयजिनका पितु मातापर देवी देव सरिस अधिकाय ।। तिनका जगमा कछदुर्लभ ना साँचीकहतललितयहगाय१६० करों वन्दना अव शंकर की ह्याँते करों तरँगको अन्त ।। राम रमा मिलि दर्शन देखें इच्छा यही भवानीकन्त १६१ इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,याई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजवाबूश्यागनारायण जीकीआज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गत पॅडरीकलां निवासि मिश्र वंशोद्भव वुधकृपाशङ्करसूनु पण्डितललिताप्रसादकृत रंजित युद्धागमनबर्णनोनामप्रथमस्तरंगः॥१॥ सर्वया ॥ दीनदयाल गुपाल कृपाल सुरासुरपालं सुनो महराजा। सोबत जागत वैठ जो होहु सुनो विनती तुमहूँ रघुर बलाम । गाजिरह्यो खल कामवली औ छलीदल मोहके वाजतवाजा । राम औ कृष्णभजे ललिते तवहूँ यह जीततह कलिराजा १ सुमिरन । रक्षा जगकी जो करते ना तौकस होत नाम जगदीश ।। ईश्वर होते रघुनन्दन ना कैसे हनत समर दशशीश १ बड़े प्रतापी अंजनि वाले अवहूँ अमर जगत हनुमान ॥ ऐसे अनुचर ज्यहि स्वामी के पूरण ब्रह्म ताहि अनुमान २. रीछ औ बाँदर को सँगमाले जीता बली शत्रुको जाय ।।. शत्रु. प्रतापी के भाई को को नरलेय जगत अपनाय ३ को फल खावत घर शवरी के कोधों तजत आपनी राज ।। कोधों तारत तिय गौतम की प्यारी माननीय शिरताज है