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आल्हखण्ड। ३७६ मारे मारे तलवारिन के मचिगा घोरशोर घमसानहर उदन मारे ज्यहि क्षत्री को सो मुहमरा तुरत गिरिजाय ॥ पास न जावे कोउ ऊरन के रणमा बढ़ा बनाफरराय ६३ कागति वरणौ तह लाखनि के दूनों हाथ करें तलवार । मारे मारे तलवारिन के आँगन वही रक्तकी धार ६४ म्वती जवाहिर दूनों भाई आँगन खूबकीन मैदान ॥ लडै बहादुर भीपमवाला देवा मैनपुरी चौहान ६५ घायल बैंक ग्यारह नेगी आँगन गिरे पछाराखाय ॥ लाखनि ऊदन त्यहि समयामा चालिस क्षत्री दीनगिराय ६६ तबै जवाहिर सम्मुख आवा गर्लई हाँक देत ललकार। काह सिपाहिन का मारो तुम हमरे साथ करौ तलवार ६७ इतना सुनिकै लाखनि ऊदन सम्मुख चले तुरतही धाय॥ आगे पीछे चौगिर्दा ते परिगे गाँस फाँसमें आय ६८ लाखनि ऊदन दोऊ ठाकुर मोती कैदलीन करवाय ॥ घेहानेगी जे आँगन में तिनहुन तुरतलीनबंधवाया लाखनि ऊदन दोउ क्षत्रिनको' राजे खंदक दीनडराय ॥ यह सुधिपाई जब मालिनिने कुसुमा पास पहूँची जाय १०० हाल बतायो त्यहि बेटी को मालिनि बार बार समुझाय॥ व्याहन तुमका लाखनि आये राजै खन्दक दीन डराय १०१ देश देश में जब फिरि आये टीका लीन कनौजीराय ॥ ऐस मुनासिब नहिं राजाको जोअबदीन्हेनिजूझमचाय १०२ गली गली में यह चरचाहे नीकिन कीन वात महराज॥ रूप उजागर सवगुण आगर खन्दक परे तुम्हारेकाज १०३ इतना सुनिके कुसुमा बेी मनमें बारबार पविताय ।