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आल्हखण्ड। ३७२ गमकें तबला सब तम्बुन में सावन यथा मेघ घहरायँ ४६ ओढ़े सारी काशमीर की धारी शिरन सोइनी भाय॥ वनी मोहनी अति मूरति है सूरति वरणि नहीं कछुनाय४७ उदन बोले तब रूपन ते ऐपनवारी दे पहुँचाय ।। रूपनवारी तब वोलत भा दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ४८ ऐपनवारी बारी वारी लेके आपन मूड़ कटावे जाय॥ आये बारी बहु कनउज के ऐपनवारी देउ पाय ४६ बातें सुनिके ये रूपन की बोला फेरि बनाफरराय ॥ वाना राखै रजपूती का चारी कौन बतावै भाय ५० इतना सुनिकै रूपन बोले बेंदुल घोड़ देउ मँगवाय ।। सुनिक बातें उदयसिंह ने दुल वाग दीन पकराय ५१ ऐपनवारी वारी लेके वैदुल उपर भयो असवार ।। सवापहर के फिरि अर्सा मा पहुँचाजाय नृपति के द्वार ५२ सवैया॥ देखिके रूपनि को दरवानि कहा इमि वानि सो बेगि सुनाई। कौनसो देश बसौ क्यहिग्राम औ कौनसोकाज गये तुम भाई॥ जायकहाँ नृपसों चलिक भलिके निजहाल जो देउ बताई। बानि सुन्यो ललिते जब रूपनि बोलि उठ्यो तब मोदवदाई ५३ ऐपनवारी बारी लावा राजे खबर सुनावो जाय ।। हमें पठावा आल्हा ऊदन व्याहनये कनौजीराय ५४ इतना सुनिके द्वारपाल चलि राजै खवरि दीन बतलाय ॥ सुनिके वात द्वारपाल की राजा गये दुवारे आय ५५ दारे आगे जब गंगाधर रूपन बोला शीश नवाय।।