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इन्दलहरण । ३४५ २६ काह नेग दारे को चहिये सोऊ देय आप बतलाय १५५ रूपन बोला द्वारपाल सों यह तुम खबरि सुनावो जाय । ॥ एक पहर भर चलै सिरोही यहही नेग देय पठवाय १५६ सुनिक बातें ये चारी की आरी द्वारपाल अधिकाय ।। शोचि समझिके महराजा सौ रूपन कथा सुनाई जाय १५७ इतना सुनिकै अभिनन्दन ने हंसामल को लयो बुलाय॥ पकरिकै लावो त्यहि बारी को दारे जौन रहा वर्राय १५८ इतना सुनिके हंसामल ने अपनी लई ढाल तलवार ॥ औरो क्षत्री चलि ठाढ़े में अपनेबाँधिवाँधिहथियार १५६ दारे देखें जब बारी को आरी भरे सिपाही ज्ञान ॥ •भीर देखिकै रूपन बारी लाग्योकरन घोरघमसान१६० चली सिरोही भल द्वारे पर औ बहिचली रक्त की धार ॥ रूपन बारी के मुर्चा पर अंधा धुंध चलै तलवार १६१ रूपन मारै तलवारी सों घोड़ा करै टाप की मार ॥ बड़े लडैया काबुल वाले मनसों गये तहाँपर हार १६२ धर्म बनाफर का जाहिर है जिनके जपै तपै का काम ।। विजय अधर्मिन की दीखी ना रावण कीन बहुतसंग्राम १६.३ कंस सुयोधन जरासंध अरु अधरम रूप मरा शिशुपाल ॥ काल कलेवा सबको कीन्ह्यो रहिगा धर्मएक सबकाल १६४ ताते धर्मी आल्हा ठाकुर रूपन खूब करें तलवार ।। देखि वीरता यह रूपन की हंसा कहा बचनललकार १६५ सभरिक बैठे अब घोड़ा पर वारी भली मचाई रार।। जियत न जैहै दरवाजे ते हमरी देखि लेय तलवार १६६ इतना मुनिक रूपन बोला क्षत्री मानो कही इमार ॥