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आल्हखण्ड।३११ सजे बराती तहँ गढ़े थे आल्हा कूचदीनकरवाय १४३ चलिकै पहुँचे फिरि नरवरगद ऊदन मिले तहां पर आय ॥ लेकै फौजे मकरन्दा मिलि आल्हा सहितवलेहाय १४१ अटक उतरिक कावुल बैंक पहुँचे मास अन्त में जाय॥ रहो बुखारो आठ कोस जव तब टिकिरहे बनाफरराय १५५ टिकिगा लश्कर रजपूतन का क्षत्रिन छोरि धरे हथियार ॥ आल्हा ठाकुर के तम्बू माँ बैठे बड़े बड़े सरदार १४६ बोले पण्डिन तब आल्हा ते तुम सुनि लेउ वनाफरराय ॥ ऐपनवारी की विरिया है रूपन बारी देउ पठाय १४७ इतना सुनिकै रूपन बोला दोऊ हाथ जोरि शिस्नाय ॥ हम नहिं जैहैं बलखवुखारे अवकी आनदेउपठवाय १४८ इतना सुनिक मलखे बोले रूपन साँच देउ बतलाय ॥ जौने घोड़ा का जी चाहै तोने देय तुरत मँगवाय १४६ घोड़ करि लिया रूपन माँग्यो मलखे तुरत दीन कसवाय ॥ ऐपनवारी बारी लेके बैठा घोड़ पीठि में जाय १५० दाल खड्ग ले मलखाने ते रूपन कूच दीन करवाय ।। डेद पहर के फिरि अर्सा मा, पहुँचाराजद्वार पर जाय १५१ हुकुम दररै हुकुम दसे नाहर घोड़े के असवार ।। कहाँ ते आये औ कहँ जैहै कह है देश रावरे क्यार १५२ इतना मुनिकै रूपन बोला तुमते साँच देय बतलाय ॥ नगर महोवाते आयन हम इन्दलब्याहकरनकोभाय १५३ ऐपनवारी हम ले आये रूपन वारी नाम हमार॥ खबरि जनावो महराजा को हमरो नेग देय अवदार १५४ . इतना सुनिक द्वारपाल कह रूपन वारी पात सुनाय । !