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१८ आल्हखण्ड। ३३० कुसुमारानी की पुरिया सों जादू गई तहां सब हारि २५ रूप उजागर सब गुण आगर नागर देशराज का लाल।। विषय उमण्डी वलवण्डी जी रण्डी कुलै विडम्बी वाल २६ ती सब देखें बघऊदन को ननन वैनन सैन चलाय॥ धर्म न छाँडै यहु क्षत्री का ज्यहिकाकहीउदयासेंहराय २७ दीख कुदृष्टी ज्यहि ऊदन का त्यहिका डाटिदीन ततकाल ।। नैनन सैनन अरु वैनन में गिन सिद्धपुरुपक्यहुकाल २८ हम नहिं भोगी नर योगी हैं । रोगी विषय भरी तू वाल ॥ माता भगिनी अरु कन्यासम देखें तीनिभाव सबकाल २६ तपै विखण्डी पररण्डी भण्डी नरक केरि अधिकाय ॥ गह हम जानतहैं नीकी विधि तुमने साँच देय बतलाय ३० बातें सुनिक ई योगी की नारिन मूड़ लीन औंधाय ॥ बोलि न आवा क्यहु नारी ते घर घर चलन लगी शर्माय ३१ खबरि पायकै कान्तामल ने योगिन द्धार लीन बुलवाय॥ योगी आये जब द्वारे पर आसन तुरतदीन बिछवाय ३२ लैके गडवा दौरति आवा तुरते पॉय पखारेसि आय ॥ पैर धोयकै तिन योगिन का लै जलधाम छिनासाजाय ३३ पढ़े मनुस्मृति भलकान्तामल जाने अतिथियाव अधिकाय ।। पै पहिचानत त्यहि योगीथे मकरंद वार वार मुसुकाय ३४ यह गति दीख्यो मकरन्दाकै बोल्यो तुरत बनाफरराय ।। तुम पहिचान्योनहिंमकरदको तुमको देखि देखिमुसुकाय ३५ पाय इशारा यहु ऊदन का सुख तन दीख खूब धरिध्यान।। देवा ऊदन मकान्दा का निश्चय फेरिलीन पहिचान ३६ कियो खातिरी तव पहुनन के ले रनिवास पहूँचा जाय ।