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आल्हखण्ड। ३२८ पूत हमारे के मारन को · ऊदन मेला गये लिवार ११६ वातें सुनिकै ये पाल्हा की द्यावलि ठाढ़ि रही शिस्नाय ॥ ऊदन ठाकुर को आल्हा ने कोड़न चर्सा दीनउड़ाय ११७ ओ ललकारा फिरि ऊदन को आल्हा दाँतन ओठ चवाय ।। धिक धिक तेरी रजपूती का इन्दल विना पहूँचे आय ११८ दशहरिपुरवा अब आये ना नहिंहनिडरों खड्ग के घाय ॥ जहँ मनभावै तहँ चलिजावै साँचीशपथ शारदामाय १२६ सुनि वाते ये आल्हा की ऊदन चला बहुत घबड़ाय ॥ सुनवाँ फुलवा द्यावलि तीनों पृथ्वी गिरी पछारा ख.य १२० देवा ऊदन दोऊ ठाकुर सिरसागढ़े पहूँचे जाय ॥ खबरि पायक मलखाने ने फाटककन्दलीन करवाय १२१ यह गति दीख्यो उदयसिंहने ठाढो लाग तहाँ पछिनाय ॥ कोऊ साथी नहि विपदा में यह देवाते कह्यो सुनाय १२२ सवैया॥ जाकि सुता हरिके गृह शोभित चन्द्रललाट महेश प्रवीनो। इन्द्र गयन्द दयो हय रविको देवन धेनु दुमादिक दीनो॥ शिरी मुनिरायजू कोपकियो तब गण्डकधारि सबै जलपीनो। एते बड़ेको विपत्तिपरी तब सिंधु कि काहु सहाय न कीनो १०३ इतना सुनिकै देवा बोला साँची सुनो लहुस्खा भाय।। साथ तुम्हारो हम छाँड़व ना चहुतनधजीधजीउडिजाय १२४ पै हम बांचे बहु पुराण हैं देखी कथा अनेकन भाय ।। विपतिमें साथी कोउ विरलाई साँची सुनो बनाफरराय १२५