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आल्हखण्ड।३१८ तुम्ही गुसैयाँ दीनबन्धु हो ओ ब्रह्मण्यदेव ब्रजराज ॥ लाज रखैया बाम्हन तनकी साँचे एक कृष्ण महराज ४ शरणहि ताकत विन सुदामा पायो सकल सम्पदा राज ॥ छूटि सुमिरनी गई कृष्ण की इन्दल व्याह बखानों आज ५ अथ कथामसंग ॥ परख दशहरा की जग जाहिर बुड़की हेतु जाय संसार । भारी मेला श्रीगंगा को हिंडनक्यार ..पूर त्यवहार १ बहुतक छैला अलबेला तहँ घोड़न उपर भये असवार । करी तयारी श्रीगंगा की चक्कस लिये बुलबुलनक्यार २ जेठदुपहरी आरी हकै ब्यारी करें बृक्षतर आय ।। देखि गवाँरी तहँ नारी नर बोला तुरत बनाफरराय ३ कहाँ तयारी नर नारी करिव्यारी कियो यहाँपर आय॥ भ देखि बनाफर को नर नारी बोले साँच देय बतलाय ४ कीन तयारी हम विठूर की भारी पर्व दशहरा केरि ।। चक्रित कै ऊदन दीख्य चारिउ दिशातरफ फिरिहेरि ५ भारी मेला अलबेला तो रेला चला जाय सबराह ॥ घोड़ वेंदुला का चढ़वैया आयो जहाँ बैठ नरनाह ६ हाथ जोरिक तह आल्हा के ऊदन बोले शीश नवाय ।। करें तयारी हम गंगा की दादा हुकुमदेउ फरमाय ७ इतना सुनिके आल्हा बोले साँची सुनो लहुरवा भाय।। देश देशके राजा अइहें होई भीर भार अधिकाय - गरि महो तुम मेला में हमपर परी आपदा आय॥ ताते जावो नहिं मेला को मानो कही लहुखा भाय । इतना सुनिके माहिल चोले तुम मुनिलेउ बनाफरराय ॥