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आल्हखण्ड | २६६ पाती दीखी गल सुवना के मल्हनानामदीनवतलाय १४३ सुन्यो जबानी जव मल्हनाकी सुवना बैठ हाथ पर आय॥ छोरिक पाती मल्हना रानी भाँकुइआँकुनजरिकजाय१४४ पढ़िक पाती रानी मल्हना रुपना बारी लीन बुलाय।। चिट्ठी दीन्यो महरानी ने औसबहालकह्योसमुझाय१४५ लेकै चिट्ठी रुपना चलिभा मलखे पास पहूँचा जाय ॥ चिट्ठी दीन्यो मलखाने को औरोहाल गयो सवगाय १४६ पदिक चिट्ठी मलखाने ने तुरतै फौजन कीन तयार ।। जितने क्षत्री रहें सिरसामें सवियाँबाँधिलीनहथियार१४७ लैकै फौजै मलखाने फिरि पहुँचा नगर मोहोवे आय ॥ खबरि पठाई फिरि आल्हाको राजा पास पहूँचे जाय १४८ हाथ जोरिक मलखे बोले दोऊ चरणन शीश नवाय ।। कीन तयारी हम बौरी को ब्रह्म साथ देउ पठवाय १४६ सुनिक बातें मलखाने की बोले तुरत चँदेलेराय ।। शकुन उठावो देवा ठाकुर, देवो हार जीत बतलाय १५० निकै वातै महराजा की ज्योतिष पुस्तक लीन उठाय॥ जायज्ञ उठायो देवा ठाकुर बोल्योहाथजोरि शिरनाय १५१ तुम्हारी बौरी देहे राजन सत्य दीन बतलाय ।। मन में फौज आल्हा ठाकुर तलगगये तहाँपरआय १५२ तबलों माल्लिा दिननायक सों झण्डा गड़ा निशाकोआय ।। ऐसो पाहुन व चमकम लागे पक्षी गये बसेरन धाय १५३ को समुझाव दिया तकि तकि घों घों कण्ठ रहा घर्राय ॥ सनिकै बात ये मधुनन्दन के सन्तनधुनी दीन परचाय १५४ अपने को छाते करों तरंगको अन्त । देखि दु