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चन्द्रावलि की चौथि । २६३ विदाकरहें ये बेटी को दासी अपनि वनहें जाय १०७ सरि पायक परिमालिक ने हमको तुरत दीन पठवाय ।। बिदाकहे जो वऊदन तो सब जैसे काम नशाय १०८ ईजति जैहै दोऊ दिशिकी साँचे हाल दीन बतलाय।। जहर घोराको तुम भोजन में औ ऊदन को देउ खवाय १०६ विना वयारी जूना टूटे औबिन औपधि वह बलाय॥ चरचा कीन्यो नहिं ऊदन ते मानो साँच यादवाराय ११० इतना कहिकै माहिल ठाकुर चलिभा करिकै राम जुहार ॥ हुकुम लगायो महराजा ने महलन भोजनहोय तयार १११ फेरि बुलायो सब पुत्रन को माहिल कथा कह्योसमुझाय॥ बात लेन को ऊदन आयो भोजन जहर देउ डरवाय ११२ छली धूर्त को या विधि मारे तो नहि दोष देय संसार । खबरि जनाई फिरि महलन में भोजन वेगि भये तय्यार ११३ भयो बुलौवा फिरि भोजन का ऊदन लीन ढाल तलवार । देश हमारे के रीती ना भोजनकरै बाँधि हथियार ११४ शंका लावो कछु मन में ना १ नाहर उदयसिंह सरदार ॥ बातें मुनिकै बहनोई की ऊदन धरी ढाल तलवार ११५ जायकै पहुँचे फिरि चौकापर नाहर देशराज के लाल ॥ साथै बैठे बहनोई के राखे गये परोसे थाल ११६ रक्षक सबको जग एकै है पूरणब्रह्म चराचर राम ।। कर चाकरी नहिं अजगर क्यहु पक्षी कर न केहू काम ११७ अथवा जानो यह साँची तुम मछलिन कौन देय आहार ।। ताल सुखाने चपी भूमि में रक्षा करें राम भार ११८ भै रघुनन्दन के दाया तब उदन लीन्ह्यो थाल उठाय ॥