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उदयसिंहका विवाह । २६७ २६, इतना सुनिकै द्वारपाल कह बारी घोड़े के असवार १५७ नेग बतावो तुम द्वारे का राजै स्वऊ सुना३ जाय ॥ इतना सुनिकै रूपन बोला तुमसों साँचदेय बतलाय १५८ चार घरीभर चले सिरोही दारे बहै रक्तकी धार ।। नेग हमारो यह साँचाहै याँचा आय तुम्हारे द्वार १५६ सुनिक वातें ये रूपन की बोलीरपाल ततकाल ॥ पीके दारू दारे आये टेढ़ी बात है मतवाल १६० टरिजा टरिजा अब द्वारे ते ओ मतवाले जाति गँवार ।। असगति नाहीं क्यहुराजा की द्वारे कर आय तलवार १६१ काल गाल माँ तू बैठाहै मानै साँच बात यहिबार ।। हवा खायकै ठंढे के बोले घोड़े के असवार १६२ इतना सुनिकै रूपन बोला गाई हाँक दीन ललकार ॥ हाथ सिपाही पर डार ना जवलग मिले ढूंढ़िसरदार १६३ हमका जान दिल्ली वाले जिनके द्वारकीन तलवार ।। झुन्नागढ़ औ नैनागढ़ में दारे बही रककी धार १६४ चारि रुपल्ली का नौकर तू टिलटिलटिलटिल रहामचाय।। इतना सुनिकै द्वारपाल चलि राजे खबरि सुनाई जाय १६५ जितनी गाथा रूपन बोले गासो यथातथ्य सब गाय ॥ सुनिक बातें द्वारपाल की नरपति तुरतै उठा रिसाय १६६ हुकुम लगायो मकरन्दा ते बारी पकरि दिखावै आय ।। विजयसिंह विजहट को राजा मकरँदसाथचलारिसियाय१६७ दारे दीख्यो जब रूपन को गर्मीई हाँक दीन ललकार ।। खबरदार हो खबरदार हो बारी घोड़े के असवार १६८ काल गाल माँ तू बैठा है भवहीं जान चहत यमदार ।।