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-- ३० आल्हखण्ड जो कछु भापा पृथीराज ने सुनीहकीकति जवमाहिल सब बड़ी उदासी सों बोलत भा ब्याह जो होइहै ब्रह्मानंद का भेटन आवें परिमालिक जब इतना कहिकै माहिल चलिमे सुनिकै बातें वघऊदन की ताकत हमरे अस नाहीं है गजभर छाती पृथीराज की रह्यो भरोसे तुम हमरे ना मलखे बोले तव आल्हा ते भयो हसौवा अब दिल्ली माँ ऐसी बातें राजा चोलें अब तुम चलिहौसमम्बारे को हँसिह दिल्ली में नरनारी जेठो भाई भाई बाप बरोबरि सुनिक वातें ये मलखे की ठाढ़े पृथीराज जह उतरिकै हथी के हौदा ते गये सामने जब पिरथी के लखें तमाशा तहँ नारी न पिरथी वोले तहँ आल्हा से भव तुम नावो निज तम्बू के सनिक वात ये पिरथी के