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1 आल्ह खण्ड। २०६ सोई दशरथ के रघुरैया नेया तुही लगैया पार ॥ एक पूतकी मैं मैयाहौं ताकी कुशल किटोकरतार सुमिरन करिकै रघुनन्दन को मल्हना करनलागि घरकाम ।। मलखे ठाकुर त्यहिसमया में ताहर वेगि बुलावा धाम जितने वासी हैं मुहवे के आये सबै नारि नर द्वार॥ सात सुहागिल त्यहि समयामें गावन लगी मंगलाचार ६६ बड़ी भीर में परिमालिक घर कहुँ तिलडरा भूमि ना जाय । चूड़ामणि पण्डित तहँ आयो साइति तुरत दीन वतलाय ६७ नव पिचकारी भरिकेशीर रँग मारे एक एक को धाय । धूरि उड़ाई तह अवीर की - महलन गई लालरी छाय ६८ चौक पुराई गजमोतिन सों पीढा तहाँ दीन धरवाय॥ चौड़ा ताहर दउ ठाढ़े थे ब्रह्मा गये तहाँपर आय ६६ को गति वरणे परिमालिक कै लोहा छुये सोन लैजाय ।। पारस पाथर व्यहिके घरमाँ त्यहिकी द्रव्यसकैकोगाय १०० ऊदन बोले तह ताहर सों अब तुम टीका देउ चढ़ाय। साँग गाड़ दइ तब ताहरने औयहवोल्यो भुजा उठाय १०१ सॉग उखार ब्रह्मा ठाकुर तौ हम टीका देई चढ़ाय।। रीति हमारे यह घरकी है साँचे हाल दीन बतलाय १०२ सात तेधा लोहे के नीचे तापर साँग गाड़ि हम दीन । सॉग उपहारें ब्रह्मा ठाकुर तोहमव्याहवहिनकाकीन१०३ देखि तमाग बहु ताह स्का भशकुनकीन्ह्याम्बरमहलनमां टीका तुरत देउ लौटाय १४ विना वियाहे ब्रह्मा रहि हैं तो नहिं होय हमारी हान॥ अकिन तुम्हारी को लेलीन्दी मानों नहीं कही मलखान १०५ मल्हना बोली वचन रिसायो