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भाल्हखण्ड। १९८ न्याह बखानों त्यहि ब्रह्माको ज्यहिका पिता रजा परिमाल अध कथाप्रसंग। पृथीराज दिल्ली को राजा ज्यहिका जानसकलजहान ।। कन्या उपजी जव त्यहिके घर तारा टूटि तबै असमान : थर थर थर थर पृथ्वी कांपी दर दर वोले श्वान भृगाल। झन् झन् झन् झन् वायू डोली अशकुनबहुतभयेत्यहिकाल २' अशकुन दीख्यो पृथीराज ने तुरतै पंडित लीन बुलाय॥ लैके पोथी ज्योतिष वाली पंडित हाल दीन बतलाय ३ गौना है जब कन्या का है तबै घोर घमसान। बहुतक क्षत्री तब नशिजैहैं जुझिहैं बड़े बड़े ह्याँ धान ? ताते वेला यहि कन्या का राखो नाम आप महराज ॥ पाय दक्षिणा पंडित चलिभो होक्न लागि और फिरिकाज५ छठी बारहों पसनी द्वैगै बेला परो तामु को नाम । सात वरस की जब वेला भइ खेलत फिरै सखिन के धाम ६ कोउकोउसखियां तहव्याहीथीं दी दिये आपने भाल॥ कारी पू, तिन व्याहिन ते सखितुमकही श्वशुरपुरहाल." ब्याही बोली आमाहिन ते मानो सखी वचन तुमसाँच ॥ जब सुधि आवत है बालम के तव उर जरै विरहकी आँच सुरपुर नरपुर अहिपुर माहीं सो सुख नहीं पर दिखरायः॥ जो सुख पावा हम श्वशरे में वालम छाती लीन लगाय६ कटिगहि मसके हम नहिंटम में कसके हृदयकिये सुधिआज ॥ कासुखजानो तुमअनुव्याहिउ वैरिनि भई हमारी लाज १० मुनि मुनि वात ये व्याहिनकी सब अनन्यही गई शर्माय ॥ बदी लालसा तब न्याहे की त्याला घरै पहुंची आय !! ! 3