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आल्हखण्ड । १६६ मिला भेट करि सबकाहू सों फुलियामालिनिलीनबुलाय ॥ बहुधनदीन्योफिरिफुलियाको रोवत चढ़ी पालकीजाय ११५ बड़ी खुशाली आल्हा कीन्ह्यो बहुधन द्वारे दीन लुटाय ।। विदा मांगिकै गजराजा सों लश्कर कूच दीनकरवाय ११६ सात रोज को धावा करिकै पहुँचे नगर मोहोवा जाय ॥ सखिया मंगल गावन लागी परछन भई द्वारपर आय ११७ बिदा मांगिकै न्यवतहरी सब निज निज देशगये हर्षाय॥ चील्ह रूप धरि सुनवाँ आई मल्हनावशीभईअधिकाय११८ देवलि विरमा त्यहि औसर में फूली अंग न सके समाय॥ को गति वर्णे परिमालिक की मानों इन्द्रलोक गे पाय ९१६ पिता आपने की दाया सों मलखे व्याह गर्यो सब गाय ॥ नही भरोसा निज भुजबलका किरपाशंकर करें सहाय १२० आशिर्वाद देउँ मुंशीसुत ' जीवो प्रागनरायण भाय॥ हुकुम तुम्हारो जो होतो ना ललितेकहतकौनविधिगाय१२१ रहे समुन्दर में जबलों जल जबलों हैं चन्द औ सूर॥ मालिक ललितेके तबलों तुम यशसों रही सदा भरपूर १२२ इष्ट देवता मम एकै हैं पूरण ब्रह्म राम भगवन । चरणकमल तिन धरि हिरदे में ह्याँसों करों तरंग को अन्त१२१ इति श्रीलखनऊ निवासि (सी, आई, ई ) मुंशीनवलकिशोरात्मन बाई भयागनारायणगीकी आज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपॅडरीकलांनिवासि मिश्रवंशोद्भव बुध कुपाशंकरसूनु पं० ललिताप्रसादकृत मलखेपाणिग्रहणवर्णनोनामतृतीयस्तरंगः ॥३॥ मलसे विवाहसमाप्त ॥ 1 इति॥