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. ३८ भाल्हखण्ड | १६४ को गति वणे तहँ ऊदन की गडुवन मारि कीन खरिहान ॥ लाखनि ब्रह्मा के मुर्चा में सम्मुख लड़े न एकोज्यान ६३ कांतामल औ सूरज ठाकुर दोऊ हाथ करें तलवार ॥ बड़े लडैया मोहवे वाले ठाकुर समरधनी सरदार ६४ ' मुण्डन केरे मुड़चौरा मे औ रुण्डन के लगे पहार ॥ मारे मारे तलवारिन के चौका बही रक्की धार ६५ जैरो भेड़िन भेड़हा पेठे जैसे अहिर बिडारै गाय ॥ तेसे ठाकुर मोहने वाले मारिकैदीन्हो समरसोवाय ६६ बहुतक जूझे मुन्नागढ़ के रानी राजै लीन बुनाय । रानी बोली फिरि राजा सों मानों कही विसेनेराय ६७ बड़े लड़ेया मोहवे वाले ओ महराजा वात बनाव ॥ लडिकैजितिहौनहिंआल्हासों तुम करि थाके सबै उपाव ६८ कहा न मानो तुम माहिल को नहिं सब जैहैं काम नशाय॥ हँसी खुशी सों बेटी पठवो याहि में भला परै दिखराय ६६ चाते सुनिके ये रानी की राजा समर पहूँचा आय ।। भुजा उठाये फिरि बोलत भा अवहीं मारु बन्द द्वैजाय १०° मारु बन्द भै दोऊ दिशिसों राजा बोला वचन सुनाय॥ विदा करावो सब बेटी को नहि कछु देर बनाफरराय १०१ याने मुनि गजराजा की द्वारेगये वराती कपड़ा पहिरे अपने अपने सीताराम चरण मनध्यायर०२ कुम लगायो ह्याँ गनराजा वेटी बेगि होय तय्यार। कम पायक महराजा को सोलह करनलागि शृंगार १०१ संवया। मभन चोर मओ कुण्डल अंजन नाक में गौक्तिक वेश सवारी। आय॥ H