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मलखानका विवाह । १६३ धन्य सराही त्यहि ठाकुर को तुम सों मिलें नात समरस्त ।। क्यहु अभिलापा कछुवाकीना द्वैगे सबै ज्यान अब पस्त ८१ चातें सुनिकै ये राजा की आल्हा हुकुम दीन फर्माय ।। बारह ठाकुर गे गोरिन में तेई फेरि सजे सब भाय - २ भाला वरची औ ढालै लै हाथ म लई सबन तलवार ।। नाई वारी गडुवा लीन्हेनि चलिमे सबै शूर सरदार ८३ मलखे बैठे फिरि पलकी में बाजन सबै रहे हहराय ।। एकपहर के फिरि अर्सा में राजा भवन पहूंचे जाय ८४ नाई आवा फिरि भीतर सों आल्है शीश नवावा आय ।। जल्दी चलिये अब भोजनको करिये न देर वनाफरराय ८५ इतना सुनिकै सब क्षत्रिनने अपने कपड़ा धरे उतार ।। ढाले धरिकै गैंडावाली हाथ म लई नाँगि तलवार ८६ तव गजराजा कह आल्हा सों ठाकुर मोहले के सरदार॥ हमरे कुलकी यह रीती ना भोजन करत गहै हथियार ८७ एकरीति नहिं सब देशन में अपने कुला कुला व्यवहार ॥ वाते सुनिक ये राजा की सबहिन धराफेरि हथियार ८८ चलिकै ठाकुर गे चौका में पीढ़न उपर वैठिगे जाय॥ षटरस व्यंजन सब परसेगे उत्तम भातगयो फिरिआयम लक्ष्मी बोलत परले ढगै आये सबै शूर समुदाय ॥ जान न पाएँ मुहवेवाले सबका कटा देव करवाय ६० बाते सुनिकै गजराजा की आल्हा गये सनाकाखाय ।। गडुवा लेके ऊदन छाड़े मलखे पाटा लीन उठाय ६१ बड़ी मारु मै फिरि चौका में अद्भुत समर कहा ना जाय ॥ पाय लागै ज्यहि ठाकुर के धुमित गिरे मूर्छा खाय ६२