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१२ आल्हखण्ड! चढ़ी जवानी पृथीराजकी पृथीराजकी कुश्ती लड़े अखाड़े जायें ।। खनखनठनठन भनभनमनमन कैसो शब्द कानमें जाय ११२ वाण चलावें जहाँ तानिकै ताको तुरतै देय नशाय ।। ऐसे राजा पृथीराज हैं ओमहराज कनोजीराय ११३ सुनिकै वाते त्यहि बाम्हन की फिरि ना बोल्यो बँदेलाराय ॥ सभा विसर्जन करि जल्दी सों महल में तुरतपहूंच्योजाय ११४ कियो वियारी फिरि मंदिर में सोयो रामचन्द्रको ध्याय ॥ खेत छूटिगा दिननायक सों झंडागड़ानिशाकोबाय ११५ तारागण सब चमकन लागे पक्षिन चुप्पसाधि तब लीन ।। चलेआलसीखटिया तकितकि नाहकजन्म विधातै दीन ११६ आगे लड़ि हैं पृथइराज अब करि है घोर शोर घमसान ।। बैठो यारो अब थकिआयन मानो सत्यवचनपरमान ११७ इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुशीनवलकिशोरात्मजवावृपयागनारायण जीकीआज्ञानुसारउन्नायप्रदेशान्तर्गतपड़रीकलां निवासि मिश्रवंशोद्भव बुधकपाशङ्करसूनु पण्डितललिताप्रसादकृत संयोगिनि स्वयम्बरोनामप्रथमस्तरंगः १ ॥ सर्वया ।। भो शरणागतपाल कृपाल उदार अपार सबै गुण तेरे। यांचि भयों शरणागत में न लहों अजहूं तुमको कहुँ हेरे ।। गावत संत महंत सबै कि हृदय विच रामरहँ सबै केरे। सो नहिं टेरे सुनें ललिते फलिते न भयेहैं मनोरथमेरे १ सुमिरन । चलेश्वरी पैडरी की गइये जिनकाविदितजगतपरताप ।। मन ओ बाणी सों जो घ्यावे ताके टिजायँ सब ताप ?