भाल्हखण्ड। १६२ टीका अायो पथरीगदका ताको तुरत देउ लौटाय॥ ब्याह बिसेने घर करिखे ना मानों कही उदयसिंहराय ४६ घोड़ अगिनियाँ तिनके घरमाँ ज्यहिके मारे फौज बिलाय ।। सुनिकै बातें परिमालिक की बोले तुरत बनाफरराय ४७ दतिया मारि उरेछोमारो पहुँचे सेतुबंध लों जाय । ॥ पेशावर मुल्तान कमायूं बूंदी थहर थहर थहराय ४८ अटक पारलों झंडा गडिगो मेवात लीन लुटवाय ॥ गर्व न राखा क्यहु क्षत्री का मानो कही चंदेलोराय १६ गिनती किनमें बिसियानन की गढ़े तखत देउँ उलटाय ॥ होनी मुखसों तुम भाषतहौ मेरो रजपूती धर्म नशाय ५० मलखे ब्याहनको रहे ना यह दिन कहिवेको रहिजाय । टीका लौटी ना मोहबे ते राजा सत्य दीन बतलाय ५१ बोला धुंदेला तब देवा ते अब तुम शकुन विचारो भाय ।। कैसी गुजरी पथरीगढ़ में सो सब हाल देउ बतलाय ५२ सुनिकै बातें परिमालिककी देवा पोथी लीन उठाय॥ शकुन सोचिकै देवा बोला साँची कहीं दिलोराय ५३ जीति तुम्हारी है पथरीगढ़ काहू बार न बाँको जाय ।। आजु कि साइति भल नीकीहै टीका अबै देउ चढ़वाय ५४ सुनिक बातें ये देवाकी महलन खरिदीन पहुँचाय ॥ गा हरिकारा दशहरिपुरवा द्यावलि बिरमा लवालिवाय५५ आँगन लीपागा गोबर सों मोतिन चौक दीन पुरखाय ।। चूड़ामणि पण्डित फिरिआये तुरतै सूरज लये बुलाये ५६ चारो नेगी सँग में लेके - चरण लागिके मलखाने के बीरा मुखमें दीन खवाय ५० सूरज महल पहुंचे आय ।।
पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१६७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।