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अथ पाल्हखण्ड। मलखानका बिवाह अथवा पथरी. गढ़की लड़ाई॥ सया॥ ध्यावत तोहिं सदा हनुमान यही बरदान मिलै मोहिं स्वामी। हाथ लिये धनुबान कृपान मिलें भगवान जे अन्तरयामी॥ टारे ₹न कबों उरते तिन राम नमामि नमामि नमामी। जान यही ललिते बरदान सुनो हनुमान सदा सुखधामी १ सुमिरन ॥ तुलसी हुलसी अब दुनिया में झुलसी सकल नरनकीकावि।। घर घर पोथी रामायण की दर दर फिर बगल में दावि ? गिरिगिरि चन्दन नहिं होकहुँ बन बन नहीं रह गजराज ।। नारि प्रतिव्रत नहिं घर घर हैं थल थल नहीं होय कविराजर भाइक होवें नहिं दुनिया में तव गुण जावे सबै हिराय ।। ॥