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संयोगिनिस्वयम्बर। कहि ये बातें परशुराम सों फिरि बहुपुत्र सिखावनदीन ।। सुनिक बातें निज माताकी भीषमकहाबचनछलहीन १०० विजयपत्र जोम्बहिं लिखिदेखें तो हम लौटि धामको जायें। नाहिं तो टरिहौं ना संगर ते बहुतनधजीधजीउडिजाय१०१ सुनिकै बातें ये भीषम की औ हठ दीख टरै को नाहि ॥ तब तो गंगा परशुराम सों बोलीहाथजोरित्यहिठाहिं १०२ लरिका अरुझो विजयपत्र को ओ जमदग्नितनय महराज ।। बिजयपत्र अब याको दीजै कीजैआपशिष्यकोकाज १०३ सुनिकै बिनती बहु गंगाकी तबतिनविजयपत्रलिखिदीन। बिजयपत्र ले तहँ भीपमने औ पैलगी गुरूको कीन १०४ माथ नायक फिरि गंगा को भीषम दीन्यो शंख बजाय ।। परशुराम निज आश्रम गमने भीषम घरै पहूंचे प्राय १०५ चित्र विचित्रवीर्य रहँ राजा भीषमकर छोट दोउभाय ।। तेऊ मरिगे विना पूत के तिनघरब्यास पहूंचे आय १०६ आँधर पांडु विदुर तिनलरिका जिनकारहा जगतयशछाय । अँधरे केरे दुर्योधन भे पांडुकेभये युधिष्ठिरराय १०७ दोऊ मिलिकै संगर ठान्यो तहँ सब क्षत्री गये बिलाय ॥ भयो परीक्षित फिरि दिल्लीपति ज्यहिभागवतसुन्योहर्षाय१०८ कलियुगआयो त्यही राज में ओ महराज कनौजीराय ।। को गतिबरणैत्यहि कलियुगकै हमरे बूत कही ना जाय १०६ ऐसी दिल्ली की रजधानी जामें बसै पिथौराराय ॥ रूपउजागर सब गुण आगर शोभाकही तासु ना जाय ११० नित प्रति पूजे शिवशंकर का नाहर दिल्ली का सरदार ॥ गदका बाना पा बनेठी इनमाँबहुतभांतिहुशियार १११ .