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आल्हाका विवाह । १४६ जहाँ कचहरी नयपाली की माहिल पहुंचिगये त्यहिबार ॥ दीख्यो माहिलको नयपाली राजै बड़ाकीन सतकार ७६ माहिल बोले तब राजाते तुम सुनिलेउ बिसेनेराय ।। तीनों लड़िका तुम्हरे बँधिगे चौथो पूरन लये बँधाय ८० सुनवाँ व्याहीगय आल्हा को तौ रजपूती जाय नशाय ।। पानी पी है कोउ क्षत्री ना तुमको सत्य दीन बतलाय ८१ राजा बोले तब माहिलते ठाकुर उरई के सरदार। काह कलङ्की देशराज भे सो तुम कथा कहो यहिबार ८२ माहिल बोले नयपाली ते सुनिल्यो बचन मोर महराज ॥ चले शिकारै देशराज बन दूसर बच्छराज शिरताज ८३ देवलि बिरमा दूनों बहिनी बेंचनदही जाय त्यहिराह ।। मार्ग सँकोचो त्यहि बनजानो अरनाल. तहाँ नरनाह ८४ पकरिके सींगें इक मैंसाकी देवलि दीन्यो दूरि हटाय ।। दूसर बिरमाने पकरा तहँ पाछे सोऊ पछेलति जाय ८५ दूनों अरना मारग हटिगे दूनों जोड़ भये इकठोर ॥ देशराज कह बच्छराज सों दूनों बड़ी बली इकजोर ८६ इनको लेकै घरको चलिये होवें पूत सुपूते भाय ।। तिनहिन अहिरिन के पेटेते चारो भये बनाफरराय ८७ बाप छत्तिरी माता अहिरिनि बेटा कैसे होयँ कुलीन । ब्याह न कीन्ह्यो तुमसुनवाँ का जानोंजातिपांति अकुलीन ८८ पूजन कीन्ह्यो तब माहिल का राजै फेरि कीन सतकार ॥ बड़े पियारे तुम माहिल हौ ठाकुर उरई के सरदार ८६ बहिनि बियाही चंदेले घर जिनको कही रजा परिमाल ।। किह्योमुलहिजानहितिनकोतुम हमसों सत्य कह्यो सबहाल ह.