चढ़िकै डोला में संयोगिनि सोऊ चली महल को जाय॥
उठि महराजा फिरिमहिफिलते औ दरबार पहूंचे आय ८८
मंत्री बैठत भो बाँयें पर दहिने बैठि बिप्र सब जाय॥
त्यही समइया त्यहि औसर में राजा बोल्यो भुजा उठाय ८९
कौन पिथौरा को जानत है सन्मुख ठाढ़ होय सो आय॥
सुनिकै बातैं महराजाकी बूढ़ो बिप्र उठा हर्षाय ९०
हमसों परचय पृथीराजसों ओ महराज कनौजीराय॥
पाँच बरस हम दिल्ली रहिकै पूजाकीन तासु घर जाय ९१
भोजन पाये त्यहि महलनमें बैठ्यन संग तासु महराज॥
पूँछन चाहो का महराजा सो तुम कहौ आपनो काज ९२
सुनिकै बातैं त्यहि ब्राह्मण की बोला तुरत कनौजीराय॥
कस रजधानी है दिल्ली की कैसो वीर पिथौराराय ९३
सुनिकै बातैं ये जयचँद की बोला बिप्र बहुत सुख पाय॥
नाम हस्तिनापुर दिल्लीका जानो आपु कनौजीराय ९४
आगे राजा शन्तनु ह्वैगे गंगा भई जासु की नारि॥
तिनसुत भीषम फिरि पैदा भे कीन्ह्यो परशुराम सों रारि ९५
दिन सत्ताइस का संगरभा दूनों तरफ चले तहँ तीर॥
मूर्च्छित ह्वैगे परशुराम जब गंगा आय छिनीक्यो नीर ९६
सनमुख ह्वैगे फिरि दोऊ मिलि युद्धको होनलाग सामान॥
तब समुझायो बहु गंगाने अब नहिं करो युद्ध को ठान ९७
तुम्हरो चेला यहु भीषम है ओ जमदग्नितनय बलवान॥
नाम तुम्हारो जग में ह्वैहै मानो सत्यबचन भगवान ९८
चेला जिनको अस बलवन्ता है भगवन्ता के अनुमान॥
धन्य बखानों तिन गुरु केरी रहिहै सदा जगतमें मान ९९
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आल्हखण्ड।