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आल्ह खण्ड। १३८ घोड़ दुला पर ऊदनहैं लीन्हे हाथ ढाल तलवार ९६ जोगा बोला तब घोड़ेते कौने डांड़ दवायो आय ॥ जितने आये हैं मोहवे के सबके मृड़ लेउँ कट्याय ६७ वाते सुनिकै ये जोगा की ऊदन तहां पहुंचे प्राय ॥ हम, क्षत्री मुहवे वाले वाले हमरो मूडलेउ कटवाय ६८ सुनिकै वातें जोगा ठगकुर तुरतै बैंचिलीन तलवार ॥ ऐंचिकै मारा वघऊदन को सोऊ लीन ढालपर वार ६६ भोगा चलिभा तब ऊदनपर मलखे तुरत पहूंचे आय ॥ मलखेठाकुर के मुर्चा में कोउ रजपूत न रोंकै पायँ १०० मन्नागूजर मोहने वाला पूरन पटना का सरदार ॥ लड़ें वहादुर दोउ रणखेतन दोऊहाथ करें तलवार १०१ घोड़ पपीहा की पीठीपर रूपन गरूदेय ललकार ।। भाला छूटे असवारन के पैदरचलनलागितलवार १०२ गजके हौदा ते शर वर नीचे करें महावत मार॥ कल्ला भिडिगे तहँ घोड़न के अंकुशभिड़ेमहौतनक्यार१०३ पैदर के सँग पैदर भिडिगे घोड़न साथ घोड़ असवार ।। सूंढ़ि लपेटा हाथी भिडिगे हौदन होय तीर की मार १०४ चलें कटारी कोनाखानी ऊना चलें विलाइति केर ।। मारे एक एक को हेर १०५ झुके सिपाही नैनागढ़ के ऍड़ा बेंड हनें तलवार । जोगा भोगा दोनों ठाकुर गरई हाँक दीनललकार १०६ सदा न फूलै यह बन तोरई यारों सदा न सावन होय ॥ अम्मर देही नहिं मानुप के मरिहै एकदिना सबकोय १०० हे मरदाना ज्यहि को बाना सो लड़ि मरै समर मैदान॥