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आल्हाका विवाह । १२३ इतना कहिके दूनों चलि भे महलन भये मंगलाचार। नांदी आंगन लीपन लागी पंडित साइति रहे विचार ५८ एक कुमारी तेल चढ़ाचे गावनलगीं सखी त्यहिकाल.॥ माय मंतरा मे पाछे सों नेगिननेग दीन परिमाल ५६ लैकै महाउर नाइनि आई नहखुर होनलाग त्यहिबार ।। नाइनि माग्यो तहँ पुरवाको दीन्ह्यो मल्हना परम उदार ६० उबटन करिके तन केसरसों निर्मलजलसों फिरिअन्हवाय।। कंकण बांधागा आल्हा के दूलह बने बनाफरराय ६१ सजी पालकी तहँ गदीथी तापर बैठि शम्भु को ध्याय ।। कुँवा वियाहन आल्हा पहुंचे मल्हना पैर दीन लटकाय ६२ पहिली भाँवरि के फिरतखन आल्हा गहा चरणको धाय ॥ चाग लगावों तेरे नाम की माता लेवो चरण उठाय ६३ ऐसो कहिकै सातों भाँवरि घूमा तुरत बनाफरराय ॥ मल्हनाबोली फिरि आल्हा सो सेयों तुमको दूध पियाय ६४ तासों द्यावलि सों अधिकी में तासों पैर दीन लटकाय ।। पंजा फेस्यो फिरि पीठी माँ तुम्हरो बार न बाँको जाय ६५ पाय लागिकै फिरि द्यावलिके पलकी चढ़े बनाफरराय ।। हुकुम लगायो बघऊदन ने डंका बजनलाग घहराय ६६ घोड़ करिलिया आल्हा वाला कोतल चला पालकी साथ ।। मलखे पपिहापर बैठत भे नायकै रामचन्द्र को माथ ६७ घोड़ा मनोहरा की पीठी माँ. देवा तुरत भयो असवार ।। सय्यद सिरगा पर बैठत भे नाहर बनरस के सरदार ६८ अली अलामत औ दरियाखां बेटा जानवेग सुल्तान ।। तेग बहादुर भलीबहादुर बेठे घोड़ आपने ज्ञान ६६ ! । ।