यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

माडोका युद्ध । १०६ कोउकोउ ढालनको बचुकाकरि पीठिम डारिलीन भयखाय ६८ हम सौदागर हैं जयपुरके आये राजमहल में भाय ।। पहिले फाटक के ऊपरमाँ मुर्चा परा बरोवरि आय ६६ जिन्हें पियारी रहैं घर तिरिया तिन रण डारिदीन तलवारि॥ हमें न मारो हमें न मारो दादा बापूकरें गुहारि ७० त्यही समैया त्यहि अवसरमाँ बोला तहाँ बीरमलखान ।। राजा जम्बाके मुर्चा पर ठहरे नहीं एकहू ज्वान ७१ सुनिक बातें ये मलखे की आल्हा हाथी दीन बढ़ाय ।। जम्बा केरे तहँ मुर्चामाँ पहुँचे तुरत बनाफरराय ७२ हाथी जानै भल आल्हा को यहु है देशराज को लाल । ॥ देशराज औ बच्छराज दोउ मेरो भलो कीन प्रतिपाल ७३ ज्ञान जानवर में जैसो है मानुष नहीं दशो में पांच ।। गर्भवती नारी के ऊपर फिरिनहिंचढ़े जानवरसाँच ७४ (रागानुरागोपदेशोपकारक सवैया॥) साँच रह्यो मन ज्ञान विरागमें याँच रह्यो का कारे ॥ आनि बिपत्तिपरी शिरऊपर राखु हरी भर्ती भतारे ॥ जीव गुहारपुकार करी जब आय हरी का कारे ॥ साँच नयाँच करै ललिते तब नाहिं हरी भरी भारे ७५ तैसो हाथी तहँ आल्हा को . साँचो जाति पाँतिमें साँच ।। संडि लपेटे जंजीरन को मारै हेरि हेरि दश पाँच ७६ विकट लड़ाई हाथी कीन्ह्यो करणी रही समर में नाच ।। जम्बा बोला तब आल्हा ते मानो वचन हमारे साँच ७७ तुम फिरिजावो म्बरे मुहराते हमरे बचन करो परमान ॥