यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मालम लि यांसुरी बिसद बंसी वट को बसेरो तहाँ, विविध बयार बन यिसद यहति है। बरन विरह कवि 'बालम' विविध बर, . · बास भूमि मानों पिरसु गहति है। बारिज बदनि विरचा है। वैन यानी याकी, विपनु पचन सुनिः विरचि"रहति है। यारक फहत पिलखीही होही बार मई, बार बार मोसों अंध' बोपरी कहति है ॥१५॥ जिय की कदैन अनमनीयै रहति प्यारी, .. मनु ठौर नाही सोईनारिौरिय भई । मुतनु पसीजे. उर अँसुवन मोजै छीने, कही. कहा कीजै ..जानो ठगभूरी है दई । 'पालमा सुकवि ढिग हँसति सहेलिन सो, . सपनो सो देख्यो काह. अपनाय"सौ लई । बेनु की सुधुनि गुनि नैक ही भरोसा झांकि,. अकल विकल फल पावरी सी है गई ॥१५॥ गौन के सुनत रही मौन मूली मौन मुधि, . . पीरी परि माई पशि चोरी रही हाथ दी। चौफति चकति पछिताति मुरछाति तन, .ताही एन याय उर लाय लई नाथ ही। ---विचार-विशेष मममया २-विपतु-यम- विपन्न मन ३.मागे दां-किसा ठग ने फोई यात सिला कर पेय फा