१८ प्रासमगीर बेगम मास प्र शाही सो सामाना एक पोर पर पा । इसमें रेप सम्मिसित न पे बो समय-समय पर बापणाहमा पार चारिकम प्रतम होकर दान, खिमप्रत, या मैट स्म में अपने पाराओं ओरेते थे।बेगम मासबोस वा माँ विमोतिष और भुगम्बइम में होने में जिनकी सती मास में नवी गठी थी। पानों की मर मी पसरी सनी पी। पिसमें मोवियों का पूना श्रम में मापा पावा या। एक-एक बेगम बाये पर रोष पान महीस रमवीपी। पीवाने लात से पय मा एक पतुर और वासी भी परफ्वर था, इस भी पनाम कीपेकपान् था। पाश्री हरम के ही देवमास करती थी क्या नगर रपए और मास प्रस्वासका रिणय रहती थी। पदिई भी ऐसी पीब मागवी पी बिसन मस्स उसके पेवन से अधिक होता था दो उसे हरवीगार से पार्थना करनी पती पी। हरसीलदार सुरशी के पास एक नोर मेषता पा, मुगी इसकी पता पा बिससे शादी सबाने से पपा मिल पाता या | मुग्गी ही बार्षिक प्रारम्पप का क्षेसा-यामा रलवा था। चिर्म रकम देनी होती उसके नाम एक प्रधरप पिक पर देवा पा । उस पर पीक रखनत हाते से, इसपर एक मर जगवी पी पोरम संधी पानों पर लगाई जाती थी। बब यह कि सरप्रयापद के पास बादा पावर परवीनार को अपपारेदेवा मा और वापोलार अपने मावरों को सपना पॉरन के विरदे देतापा। ममीवर रक्षा करने के लिए दो सिपा सराम पटी थी, पे बड़ी तीवी और पहादुर होती थी, तभा राणा मही पी सकती थी। इनमें जो प्रति वियतनीय होती पीके पापानागार मित गती थी। हम पायें भोर तपीलों से पिराधा प्रेख बाहर रिस और पचपूर्व वमन्त प्रथा वोग बारी-बारी से पाए देते । पापों
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