यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३२८ प्रलमगीर अपने पास है सब ये बिरार रिमा। अपनी सौरव को और मुरमुभ मुबारिहा करने की बारी की। बीस परपरी १...गुकार मावास मारया मायगार निकला, मगरकी नमाज पदी पोर दाम में माता र कल्पा पदने सपा । वीरे-धारे अत पर होगी दाने लगी, मात करने लगी, फिर मी पाठ बर तक-अप तर उसपरम नी निज गमा, उसमें गलियाँ निरन्तर माला फेरती सीमोर ठ पश्मा का उम्पारण करते हे। अम्त में उसे रोल अनुदोन की समाधि चारदीवारी में रफन लिए गोमवार के पास सदापार मेग दिया गया । वहाँ इसमें हदि एक चारण पुरानी टूी-पी पर नाचेपी, मित पर न ई यमरमर का पवयी, न पानपर गुम्मा ॥ समाप्त॥