भागमगीर एमन पर समान दोगहती पी परम्न पाए मुरवैर और उमए वैषम थी। इसके सिवावीस हबार सुनी हुई सेना पारणा के पौराबिर अपने अधीन रसीपी। पवारा अपने पसे हुए विशाल हामी पर सवार होने लगा तो ससने प्रमौरीमोर देकर कहा-'गरीब माफ-मगरूर मर्ग ।। इस पर साक्षारोप्रा-"ल्या भावाerm दारापी भी सुनारी ममारी धूप में दर्द की भांति चमक ही पी। उसके पापेभोर राजपूत वीरो रिवाले इस बार मस्त पापी पे मिनीत में कबीर और बातों पर होने वादीको बोये, मिनरे सामनेनों में नही दारे सरकदी भी। सबसे भागेसम-बरदार हापी पाबिसका माप दास-तसवार मुसमित पा। भार दिन हप करने के बाद पारा मे कौनपुर के निम पद पर पहार गया । यो बासूनो मे तार दी कि मा पुरमन नदीको है। इसलिए अपने मागे और सिपासतारों से वसा उसने चम्बा मदीसाराम सापक पाय को कर पमे अधिभर में पर लिया और मनासिवनदो पर पोचमा। चमन के तीर पर भौतारकर भी इन पर परा हुमा उम्मेन और वासियर ग्यास र समोर मा पमरर में उत्तर प्रेमा इमा या । पर एक विमा मातरम पा । पौरखमेव मै उसे से सम्मका विचार में और बोरे बोका भनेर रेनिको पुरस्कृत किया था। उसी सेनाका प्रपेड सिपावसाने लिए उवापता हो याचा अपमे पादप से पारा
पृष्ठ:आलमगीर.djvu/२३३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।