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परमवापुर महागन बहमत सिंह के पुरव यागने मार खताम: रखनविरगठौर पारी सेना सेनादि बने । उनी प्रमिपाय पुर घे उसमाए रखना हो पा मिसे कि मायामाप्रपोहा मला पारे। पातु याही सेना में ग्रीमो मगर मग और रखन सिने प्ररमे गरी परमही पावसावर प्रक्षेत्र में माप रागे। मागती पाही सेनामी मे पीछा नही गिरा। बिनी पासपो ने गा पाने पर प्रपिर सिपा। सारी वा, वा, साधी, समाना, सानप या! सैनिको ने शाही पर सामान लिया। परमवापुर पोरमयमिए पर शुम शकुन रोगा। बापत शि और अशिम तापीठ फेरी मौरंगवरी सेना में अपनाद किया। पौरमा पाने से रखर । भोर वही रपम्मि में तून से सरप साहों और पते हुए पापतोष पुग्नों बस बैठ पर हमने हममे नसावदी भनी पासी वियप स्मृति में औरंगो मे ४० पुसापनी में एक बार बनाने और बास सणाने पाहा दी। उसने बारम्बार मुगद पाठेपुरा- "त्रय, प्रवर मापके कदमो में है। मीनान तिर किरायी र में बीमार विपारी ऐसेबो पसा मारते हमारे मोरे नापे माधएंगे मगर गई और माम से पागव रोगा। उठीरा पीना लिा पर मारे भामरे पर दरो। परन्तु भोरग मे 40-'नहीं, नहीं, में ही मुभम ना पाहिए सिमे रमाये और सास यम हो पाप, और बाकी एमी दुर्ग के प्रधामाबो ना मरे णिी पोतिले उर्फ जगार भी मार और मैं मालूम शेवाममारी सी ठीक भरपर शेयरमधीरे-वारे प्राय देंगे