आर्थिक भूगोल के दूसरे संस्करण को लेकर उपस्थित होते हुए लेखक को अत्यन्त हर्ष है। पुस्तक की उपयोगिता तो इसी से सिद्ध है कि संयुक्त-प्रान्त तथा मध्यप्रान्त में कामर्स के विद्यार्थियों द्वारा पुस्तक पाठ्य पुस्तक के रूप में काम में लाई जा रही है। आज समय भी बदल गया है। लेखक का स्वप्न सत्य होने जा रहा है। वह दिन दूर नहीं है जबकि उच्च शिक्षा भी हिन्दी के माध्यम द्वारा होगी। लेखक उन व्यक्तियों में से है जिनका विश्वास है कि उच्च, शिक्षा भी हिन्दी माध्यम के द्वारा आसानी से दी जा सकती है। विद्यार्थी जीवन से आज तक लेखक का केवल एक ही लक्ष्य रहा है––अर्थात् हिन्दी में उपयोगी विषयों पर साहित्य उत्पन्न किया जाय। इसी उद्देश्य को लेकर वह पिछले पंद्रह वर्षों से हिन्दी में अर्थशास्त्र सम्बंधी साहित्य उत्पन्न करने का प्रयत्न करता रहा है। प्रस्तुत पुस्तक इसी प्रेरणा का फल है।
"आर्थिक भूगोल" इंटर कामर्स परीक्षा तथा बी० काम के पाठ्यक्रम के अनुसार लिखा गया है। लेखक ने इस बात की भरसक चेष्टा की है कि पुस्तक में सभी आवश्यक बातों का समावेश हो। भारतवर्ष के आर्थिक भूगोल का एक पृथक् भाग में विशद विवेचन किया गया है तथा प्रथम भाग में पृथ्वी के आर्थिक भूगोल को लिखते समय कुछ बातों को जिनका पाठ्यक्रम में उल्लेख नहीं है, परन्तु जिन्हें लेखक आवश्यक समझता है समावेश कर दिया है। लेखक का यह पर्ण विश्वास है कि पुस्तक इंटर कामर्स तथा बी० काम परीक्षा के लिए पूर्णतया पर्याप्त होगी।
पारिभाषिक शब्दों के अंग्रेज़ी पर्यायवाची शब्द हिन्दी शब्दों के साथ ही कोष्टक में दे दिये गये हैं जिससे विद्यार्थियों को विषय का अध्ययन करने में कठिनाई न हो।
देश की राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के उपरान्त हम शीघ्र से शीघ्र अंग्रेजी की दासता को भी छोड़ देना चाहते हैं। हर्ष का विषय है कि सभी विश्वविद्यालय गम्भीरता पूर्वक हिन्दी को शिक्षा तथा परीक्षा का माध्यम