५२९ आर्थिक भूगोल पड़ता है जो वहाँ नहीं मिलता। देश की तीन चौथाई सड़के सिंध गङ्गा के मैदान में ही हैं। यही नहीं उत्तर भारत में नदियों में बाढ़ आने की संभावना रहती है । बाढों से पक्की सड़कों को भी बहुत हानि पहुँचती है । कच्ची सड़कों के बनाने में अधिक व्यय नहीं होता और वर्षा के उपरान्त उसको फिर बना दिया जाता है। इस कारण भी उत्तर भारत में कच्ची सड़कें अधिक भारतवर्ष जैसे विशाल देश की आवश्यकता को देखते हुये तथा अन्य देशों की तुलना में यहाँ सड़के बहुत कम हैं। प्रतिवर्ग मील क्षेत्रफल पीछे भिन्न भिन्न देशों में सड़कों का माइलेज जापान-३.०० ब्रिटेन-२०० फ्रास-१८६ जरमनी-१.१६ संयुक्तराज्य अमेरिका-~१०० ब्रिटिश भारत- -१८ प्रति १ लाख मनुष्यों पीछे सड़कों का माइलेज आस्ट्रेलिया-६२१३ कनाडा-५८१४ संयुक्तराज्य अमेरिका-२८५३ फ्रांस-१३६२ जापान-६५४ जरमनी-५६५ रूस-५४७ ब्रिटेन-२७७ ब्रिटिश भारत-१७ १९१४-१८ के प्रथम योरोपीय महायुद्ध के उपरान्त मारतवर्ष में भी मोटर ट्रैफिक बहुत बढ़ी जिसके कारण भारतवर्ष में सड़कों को बनाने की ओर सरकार का विशेष रूप से ध्यान गया। १६३६ के उपरान्त प्रत्येक प्रान्त में प्रान्तीय सरकारों ने अधिक सड़कें बनवाने के लिए योजनायें बनाई और इसके लिए बहुत बड़ी रकमें अलहदा रख दी गई। कारण यह था कि नये शासन विधान में गांव वालों के हाप में मताधिकार पहुँच गया। गांव वालों
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आर्थिक भूगोल