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खेती

मक्खन का बड़े बड़े शहरों के अतिरिक्त कहीं मांग नहीं है। साथ ही यहाँ मक्खन के धंधे की उन्नति करने में कुछ कठिनाइयां भी हैं.। जहाँ छावनियाँ हैं वहीं बड़ी बड़ी डेयरी हैं नहीं तो अधिकतर, नगरों में या. तो पास. बाले गांवों से दूध आता है या शहर में रहने वाले ग्वाले अपनी गाय-मैंसों का दूध बेंचते हैं. मक्खन का धंधा तो देश में नाम मात्र को ही होता है। कुछ मक्खन विदेशों से आता है। घी बनाना देश का महत्वपूर्ण धंधा है किन्तु घी में मिलावट इतनी अधिक होने लगी है कि यदि किसी प्रकार इसको न रोका गया तो घी के धंधे को भयंकर धक्का लगेगा। भारतीय किसान वर्ष में ४ से ६ महीने बेकार रहता है । यदि 'दूध, घी और मक्खन के धंधे को सहकारी समितियों के द्वारा सगठित किया जाय तो गांवों में यह धंधा चमक उठे और किसान की आय बढ़ जाये । हिन्दोस्तान में एक बहुत बड़ी जनसंख्या धार्मिक भावना के कारण मांस नहीं खाती । जो जातियों मांस खाने से परहेज मांस का धंधा नहीं करती उन्हें भी मांस खाने को बहुत कम मिलता है। बात यह है कि कोई भी घनी आबादी वाला देश अधिक मांस उत्पन्न नहीं कर सकता । योरोप के धने श्राबाद देश नई दुनिया से मांस मँगा कर खाते हैं। निर्धन भारतीय विदेशों से मांस मैंगा कर नहीं खा सकता । यही कारण है कि यहां मांस का धंधा महत्वपूर्ण नहीं है। बड़े बड़े शहरों और छावनियों के केन्द्रों में मांस का धंधा अवश्य होता है। भेंड शीतोष्ण कटिबन्ध का जानवर है वहाँ यह खूब फलती फूलती है। बहुत गरम प्रदेशों में ऊन खराब हो जाता है। भेंड़ (ऊन का वास्तव में भेड़ पहाड़ी प्रदेश का जानवर है। वह पहाड़ों पर ही अपना भोजन प्राप्त कर लेती है। इस दृष्टि से भेंड पालने का धंधा बहुत सस्ता है क्योंकि इसके लिए वह भूमि खराब नहीं करनी पड़ती जो कि खेती के काम की हों। भारतीय भेड़ें खराब नस्ल की हैं । भारतवर्ष में मदरास, काश्मीर तथा हिमालय के अन्य भाग, और पंजाब में ऊन उत्पन्न होता है। भारतीय भेंड बहुत कम और घटिया ऊन उत्पन्न करती हैं । एक भेड़ यहाँ वर्ष भर में दो पौंड से अधिक ऊन उत्पन्न नहीं करती। हिमालय प्रदेश में एक बकरा मिलता है जिसका बाल ऊन के समान होता है। राजपूताना, सिंध, और बलूचिस्तान में भी ऐसे बकरे मिलते हैं जो कि ऊन के समान बाल उत्पन्न करते हैं। भारतवर्ष में फारस, अफगानिस्तान, तिब्बत, नैपाल' और आस्ट्रेलिया भा. भू०-१२ धंधा)