खेती.. . । भी अधिकांश जूट बंगाल की ही देन है । देश भर में जूट ( jute) लगभग उन्नीस लाख एकड़ पर जूट उत्सन्न होता है जिसमें से १६ लाख एकड़ भूमि केवल बंगाल में है। शेष विहार, श्रासाम और उड़ीसा में है। बंगात और श्रासाम में जूट की पैदावार अधिकतर ब्रह्मपुत्र को घाटी में होती है । बात यह है कि जब ब्रहापुत्र में बाढ़ आती है तो उसके द्वारा लाई हुई उपजाऊ मिट्टी खेतों पर बिछ जाती है. जिससे प्रतिवर्ष उनकी उत्पादन शक्ति बढ़ती रहती है । जूट की फसल भूमि को शीघ्र ही कमज़ोर कर देती है। ब्रह्मपुत्र नद प्रतिवर्ष भूमि को उर्बरा बनाता रहता है । इसी कारण जूट की पैदावार मैमनसिंह, ढाका, पाबना, रंगपूर, तथा बोगरा जिलों में जो ब्रह्मपुत्र के समीप हैं अधिक होती है। ब्रह्मपुत्र केवल भूमि को उर्वरा ही नहीं बनाती वरन जूट को सड़ाने के लिए भी उसका पानी उपयुक्त है जो कि अत्यन्त आवश्यक है। उत्तर बंगाल में प्रति एकड़ सबसे अधिक जूट (४०० पौंड ) उत्पन्न होता है। जूट केवल भारतवर्ष में ही उत्पन्न होता है। इसीसे कनवैस, टाट, बोरा तथा अन्य वस्तुयें बनती हैं। यही कारण है कि कपास की तरह यह भी एक अत्यन्त महत्वपूर्ण व्यापारिक फसल है और बंगाल के किसान को इसी के द्वारा रुपया प्राप्त होता है । परन्तु कुछ वर्षों से जूट की मांग में कमी हो गई इस कारण जूट के कारखानों तथा जूट के किसानों को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। जूट की मांग के कम हो जाने के तीन मुख्य कारण हैं। (१) ऐसे विशेष प्रकार के जहाज़ बन गए हैं जो केवल खेती की पैदावार को ही ले जाते हैं । इस कारण जूट के बोरों की आवश्यकता नहीं पड़ती (२) १९२६ से १९३६ तक संसार व्यापी मंदी रही, तिजारत बहुत कम हो गई, इस कारण भी जूट की मांग बहुत कम हो गई। हाँ लड़ाई के कारण जूट की मांग कुछ बढ़ी है किन्तु यह अस्थायी है। जूट की मांग कम हो जाने से जूट का भाव बहुत गिर गया। 'कृषि विमाग पिछले वर्षों से लगातार यह प्रयत्न कर रहा है कि- बंगाली किसान जूट की खेती कम करके कपास और गन्ने की अधिक खेती करे। अतएव भविष्य में जूट के खेतों पर गन्ना और कपास उत्पन्न की जायेगी। इस प्रकार जूट की उत्पत्ति में कमी हो जायेगी। भारतवर्ष आधे से अधिक जूट विदेशों को भेज देता है। आधे से कम भारतीय मिलों में खप-जाता है । ब्रिटेन ( इंडी ) जर्मनी, फ्रांस, इटली . और संयुक्तराज्य अमेरिका भारतीय जूट के मुख्य ग्राहक हैं। . .
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