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आर्थिक भूगोल

YAY आर्थिक भूगोल केउत्तर पश्चिमी सिरों पर कोयले की खाने दक्षिण ट्रैप की चट्टानों में दबी हुई हैं। इस कारण उनके विषय में कुछ शांत नहीं हैं। भारतवर्ष में झरिया को कोयले की खानें सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। भारतवर्ष में जितना कोयला निकाला जाता है उसका लगभग आधा झरिया की कोयलों की.खानों से निकलता है। यही नहीं कि झरिया.. की खानों से सबसे अधिक कोयला निकलता है वरन यहाँ का कोयला .अछी जाति का होता है। मरिया के कोयले में अधिक भाग उस प्रकार...के कोयले [क होता है जिसका कोक बन सकता है। भारतवर्ष में कोक. बनाने योग्य कोयला अधिक नहीं है और नो कुछ है वह झरिया की खानों से ही अधिकतर निकलता है। झरिया की खानों का क्षेत्रफल १५० वर्ग मील है। बारकर कोयले की खाने भी कोयला उत्पन्न करने वाले क्षेत्रों में विशेष महत्वपूर्ण हैं । यह गोंडवाना चट्टानों की निचली तहे हैं. किन्तु अभी तक इस क्षेत्र की घटिया सीम ( Seam ) को जो. ऊपरो . सतह में हैं खोदने का प्रयत्न . नहीं किया गया। रानीगंज भी कोयले उत्पन्न करने वाले क्षेत्रों में विशेष महत्वपूर्ण है। यहाँ को निवली चट्टानों में १० सीम हैं और जिनकी मोटाई २०० फीट है। रानीगंज कोयले के क्षेत्र देश को कुन उत्पत्ति का एक तिहाई कोयला उत्पन्न होता है । इसका क्षेत्रफल ५०० वर्ग मील है जिसका अधिकांश भाग बर्दवान में है किन्तु कुछभाग बांकुरा, मानभूमि तथा संथाल परगने में भी हैं। रानीगंज की ऊपरी सतह में ६ सीम ( Seam ) हैं जो कि खोदी जा सकती हैं और जिन की मोटाई ५० फीट है। गोंडवाना के उत्तरी पश्चिमी सिरे पर बरोरा का क्षेत्र है। निजाम राज्य में जो सिंगरनी की कोयले की खाने हैं वे भी गोंडवाना की चट्टानों का ही सिलसिला है। आसाम का कोयला गोंडवाना के कोयले से भिन्न होता है। अासाम के कोयले में जल तथा तेल का अंश अधिक होता है। उसमें राख ( ash) भी कम होता है। पंजाब के कोयले में गख (ash ) अधिक होता है। आसाम का कोयला कोक बनाने के उपयुक्त नहीं है सेक्योंकि उसमें गंधक अधिक होती है। पासाम में माकुम की कोयले का खाने महत्वपूर्ण हैं। ये खाने एक रेल द्वारा ब्रह्मपुत्र नद पर स्थित डिब्रूगढ़ से जुड़ी हुई हैं। पंजाब में कोयला मेलम जिले में डंडौत के पठार पर निकाला जाता है। भारत सरकार ने १९३७ में कोयले के धन्धे की जांच कराने के लिए